बजट 2022-23 में वित्त मंत्री के सामने होगी निजी उपभोग, निवेश को प्रोत्साहन देने की चुनौती

 बजट 2022-23 में वित्त मंत्री के सामने होगी निजी उपभोग, निवेश को प्रोत्साहन देने की चुनौती

आम बजट 2022-23 इसी सप्ताह प्रस्तुत करने की तैयारी में लगीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए ‘न भूतो, न भविष्यति ’जैसे संकट से उबर रही अर्थव्यवस्था को कोविड-19 के नए स्वरूप के चलते उत्पन्न नयी चुनौतियों में संभालना और उपभोग तथा निवेश की मांग को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है।
वित्त मंत्री सोमवार से शुरू हो रहे संसद के बजट अधिवेशन के दूसरे दिन एक फरवरी को 11 बजे लोक सभा में बजट प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगी। यह उनका चौथा बजट होगा।
उन्होंने 31 मई 2019 को जब वित्त मंत्रालय का दायित्व संभाला तो उनके सामने उस समय नरमी के दौर में फंसी भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारने की चुनौती थी। लेकिन उसके अगले साल कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी ने उनके सामने सदियों में कभी कभार दिखने वाला एक संकट खड़ा कर दिया। जिसमें देश दुनिया के लिए अर्थव्यवस्था से पहले जनता की प्राण रक्षा प्रथम चुनौती बन गयी।
कोविड-19 टीकाकरण की दिशा में भारत की रिकार्ड प्रगति से अर्थव्यवस्था को भी जान मिली है, पर अभी होटल, यात्रा और सीधे सम्पर्क पर चलने वाले कारोबार पूरी तरह उबर नहीं सके हैं।
उपभोक्ताओं के अधिकार और प्रतिस्पर्धा नीति पर केंद्रित गैस सरकारी संगठन कट्स के अर्थशास्त्री सुरेश सिंह ने कहा, ‘कोविड के समय, जबकि अर्थव्यस्था ठहर गयी थी, सरकार के लिए संसाधन जुटाना एक बड़ी चुनौती थी। वित्त मंत्री सीतारमण ने कोविड संकट के समय जिस तरह वित्तीय संसाधनों का प्रबंध किया, दबाव के बावजूद पेट्रोलियम उत्पादों पर तब तक कर कम नहीं किया, जब तक कि आय के स्रोत चालू नहीं हुए, वह उल्लेखनीय है। उनके नेतृत्व में वित्त मंत्रायल ने संसाधनों का बहुत अच्छे तरीके से उपयोग किया, आत्मनिर्भर भारत पैकेज में आप को कहीं अनावश्यक सब्सिडी या छूट नहीं दिखेगी। ये पैकेज बदलाव लाने वाले हैं, उनका असर दिख रहा है।’
उन्होंने कहा, ‘निम्न तुलनात्मक आधार का असर ही सही पर चालू वित्त वर्ष में भारत में नौ प्रतिशत से अधिक की अनुमानित आर्थिक वद्धि का होना एक बड़ी उपलब्धि है। इसमें मुख्य भूमिका सरकार द्वारा वित्तीय संसाधनों के अच्छे तरीके से उपयोग और परियोजनाओं के बहुत अच्छे क्रियान्वयन के तौर तरीकों से संभव लगता है।’
कोविड19 संकट के बीच 2020-21 में सकल घरेल उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 प्रतिशत संकुचन के बाद वित्त वर्ष 2021-22 में वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर नौ से साढ़े नौ प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है। वृद्धि दर में इस अनुमानित सुधार के वाबजूद देश का जीडीपी कोविड से पहले वर्ष 2019-20 के जीडीपी से डेढ़ प्रतिशत से कम ही ऊंचा होगा। वर्ष 2019-20 में आर्थिक वृद्धि उससे पिछले साल के 6.5 प्रतिशत से घट कर चार प्रतिशत पर आ गयी थी।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि 20.1 प्रतिशत (तुलना के आधार का प्रभाव) और दूसरी तिमाही में (जुलाई- सितंबर21)में 8.4 प्रतिशत रही। रेटिंग एजेंसी इक्रा की अर्थशास्त्री अदिती नायर का कहना है कि ओमीक्रॉन के चलते अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है, जिससे तीसरी तिमाही में कारोबार और आर्थिक वृद्धि प्रभावित हुई है। उन्होंने एक नोट में कहा ‘पहले उम्मीद थी कि तीसरी तिमाही ( अक्टूबर- दिसंबर 2021) की वृद्धि छह- साढ़े छह प्रतिशत तक रहेगी पर अब इसके पांच प्रतिशत के आस पास ही रहने की संभावना है।’
विश्लेषकों का मानना है कि आगामी बजट में निजी उपभोग और निवेश मांग को प्रोत्साहित करने की चुनौती होगी तभी आर्थिक गतिविधियों को गति मिलेगी। कोविड-19 के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, पेट्रोलियम उत्पादों की महंगाई और सामान्य मुद्रास्फीति के बदलाव से निजी उपभोग और निवेश मांग गिरी है।
कंसल्टेंसी फर्म ईवाई के मुख्य नीतिगत सलाहकार डीके श्रीवास्तव का कहना है कि आगामी बजट में उपभोग और निवेश मांग को प्राथमिकता देने की जरूरत है। आंकड़ों के मुताबिक अर्थव्यवस्था में निजी उपभोग का हिस्सा वित्त वर्ष 2019-20 में 57.1 प्रतिशत से घट कर 2020-21 में 56 प्रतिशत और 2021-22 में गिर कर 54.8 प्रतिशत पर आ गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share