जनता नए विकल्प की तलाश में है और बड़े नामों और पार्टियों से उकताई हुई

 जनता नए विकल्प की तलाश में है और बड़े नामों और पार्टियों से उकताई हुई

चण्‍डीगढ़। नगर निगम के नतीजों से साफ है कि जनता नए विकल्प की तलाश में है और बड़े नामों और पार्टियों से उकताई हुई है। नगर निगम में पहली बार मैदान में उतरी आप ने भाजपा और कांग्रेस को जिस तरह पछाड़ा है, उससे यही लगता है कि पूर्व में चंडीगढ़ को संभालने वाले दोनों दलों से जनता नाखुश है। भाजपा को सत्ता विरोधी भाव और महंगाई जैसे मुद्दों को झेलना पड़ा है तो वहीं अपने कुनबे को भी एकजुट नहीं रख पा रही कांग्रेस के लिए नतीजे और भी निराशाजनक रहे हैं।

सभी पार्टियों के लिए लोगों का यह संदेश भी साफ है कि केवल बड़े नामों के दम पर अब काम नहीं चलेगा। कांग्रेस, भाजपा और आप तीनों पार्टियों के दिग्गज चुनाव में चित नजर आए हैं जबकि अपेक्षाकृत नए नाम जनता का विश्वास जीतने में सफल रहे हैं। कांग्रेस से हरमहेंदर सिंह लक्की और प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चावला के पुत्र, भाजपा के तीन पूर्व मेयर और आप के चंद्रमुखी शर्मा की हार इसी की बानगी है लेकिन 35 सदस्यों के सदन में किसी भी दल के लिए स्पष्ट जनादेश न होने से आने वाले दिनों में उठापटक भी देखने को मिलेगी और पंजाब के सियासी समीकरण भी इसमें भूमिका निभा सकते हैं।

अपने वोट प्रतिशत पर संतोष जता रही भाजपा सांसद को जोड़ने पर वह आप की कुल सीटों से एक सीट पीछे रहती है। यानी आप के पास 14 सीटें हैं, वहीं भाजपा की सीटें 13 होंगी। रोचक बात यह है कि वोट प्रतिशत में कांग्रेस और भाजपा दोनों आप से आगे हैं लेकिन सीटें आप ज्यादा ले गई। कांग्रेस वोट प्रतिशत में आगे होकर भी सीटों में सबसे ज्यादा नुकसान पर रही।

दूसरी तरफ भाजपा को रोकने के नाम पर कांग्रेस आप के साथ जाएगी तो पंजाब में उसे सफाई देनी होगी, जहां आप के साथ उसका वाकयुद्ध छिड़ा हुआ है। कांग्रेस के लिए अपना कुनबा संभालने की चुनौती पहले से ही है। नगर निगम चुनाव से पहले आप में गए उसके नेताओं ने भी जो नुकसान किया है, वो दिख रहा है। – डॉ. गुरमीत सिंह, राजनीतिक विश्लेषक, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़

मुफ्त सुविधाओं के आकर्षण ने कराई आप की धमाकेदार एंट्री

नगर निगम चुनाव के त्रिकोणीय मुकाबले ने चंडीगढ़ को त्रिशंकु नगर निगम दिया है। निकाय चुनाव हमेशा स्थानीय मुद्दों पर होते हैं। चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव इसका कोई अपवाद नहीं है। वैसे तो सभी दलों ने चुनावी घोषणापत्रों में एक जैसे ही वादे किए थे लेकिन मुफ्त सुविधाओं के आकर्षण के चलते आम आदमी पार्टी अपने पहले ही प्रयास में 14 सीटें जीतने के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है।

कोविड के कठिन समय में आकांक्षाओं की पूर्ति न होने के अलावा भारतीय जनता पार्टी का 12 सीटों पर सिमटने का प्रत्यक्ष कारण सत्ता विरोधी लहर है। इसके अलावा पिछले चुनावों के विपरीत, इस बार भाजपा ने अपने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के बिना चुनाव लड़ा। कांग्रेस अपनी सीटों में सुधार के बावजूद तीसरे स्थान पर है लेकिन उसके लिए संतुष्टि की बात यह है कि वोट प्रतिशत के मामले में वह पहले स्थान पर है। जहां एक ओर शिरोमणि अकाली दल अपना खाता खोलने में कामयाब रही, वहीं दूसरी ओर मतदाताओं ने निर्दलीय उम्मीदवारों को पूरी तरह नकार दिया है। त्रिशंकु जनादेश का जिम्मेदार नई परिसीमन अधिसूचना को भी ठहराया जा सकता है, क्योंकि सभी राजनीतिक दल इसे पूरी तरह नहीं समझ पाए और न ठोस चुनावी रणनीति बनाने में सफल रहे।

त्रिशंकु जनादेश के चलते जिन भी दलों का समूह नगर निगम पर शासन करेगा, उसका कर्तव्य है कि वह सत्ता हेतु खरीद-फरोख्त से बचे। पार्टियों का दायित्व है कि वह भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देकर अपने वादों को पूरा करें। जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरें। जनता की नब्ज को पकड़कर आगे बढ़ना होगा। भविष्य की योजनाओं के साथ-साथ शासन करने वाले दल को वर्तमान पर फोकस करना होगा। जय चंडीगढ़, जय भारत, जय लोकतंत्र।  – डॉ. भारत, लेखक पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में कानून के प्रवक्ता हैं

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